समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव का सोमवार को निधन हो गया। 82 साल के मुलायम यूरिन इन्फेक्शन के चलते 26 सितंबर से गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती थे। अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के ट्विटर हैंडल पर मुलायम के निधन की जानकारी दी। सैफई में मंगलवार को मुलायम का अंतिम संस्कार किया जाएगा।
मुलायम को 2 अक्टूबर को ऑक्सीजन लेवल कम होने के बाद ICU में शिफ्ट किया गया था। मेदांता के PRO ने बताया था कि मुलायम सिंह को यूरिन में इन्फेक्शन के साथ ही ब्लड प्रेशर की समस्या बढ़ गई थी। स्थिति में सुधार नहीं होने पर डॉक्टरों ने उन्हें वेंटिलेटर पर शिफ्ट कर दिया था।
22 नवंबर 1939 को सैफई में जन्मे मुलायम सिंह यादव की पढ़ाई-लिखाई इटावा, फतेहाबाद और आगरा में हुई। मुलायम कुछ दिन तक मैनपुरी के करहल में जैन इंटर कॉलेज में प्राध्यापक भी रहे। पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर मुलायम सिंह की दो शादियां हुईं। पहली पत्नी मालती देवी का निधन मई 2003 में हो गया था। अखिलेश यादव मुलायम की पहली पत्नी के ही बेटे हैं। उनके निधन पर राजनेताओं से लेकर आम लोगों तक ने दुख जताया है।
1993 में मुख्यमंत्री बनने के बाद 2 साल तक सरकार में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था, लेकिन 2 जून 1995 को लखनऊ में गेस्ट हाउस कांड हो गया। दरअसल, सहयोगी बसपा ने मुलायम सरकार से समर्थन वापस लेने के लिए गेस्ट हाउस में विधायकों की बैठक बुलाई थी। मीटिंग शुरू होते ही सपा कार्यकर्ताओं ने गेस्ट हाउस में हंगामा कर दिया।
हंगामे ने धीरे-धीरे विद्रोह का रूप ले लिया और मायावती की भी जान खतरे में आई। हाालंकि, वहां मौजूद सुरक्षाकर्मियों की वजह से मायावती बच गईं। मायावती ने आरोप लगाया कि सपा के कार्यकर्ता उन्हें मारने आए थे, जिससे बसपा खत्म हो जाए।
गेस्ट हाउस कांड के बाद मुलायम की सरकार गिर गई। मायावती ने भाजपा के सपोर्ट से उत्तर प्रदेश में सरकार बना ली। इसके बाद गेस्ट हाउस कांड को लेकर सपा नेताओं और कार्यकर्ताओं पर शिकंजा कसना शुरू हो जाता है। मुलायम और उनके भाई शिवपाल के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज किया जाता है।
वापसी कैसे की?
केंद्र में किंगमेकर बने, गुजराल-देवगौड़ा सरकार में रक्षामंत्री रहे
UP की सत्ता से रूखसत होने के बाद मुलायम के राजनीतिक भविष्य को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई थी, लेकिन मुलायम ने नया दांव खेल दिया। इस बार मुलायम UP की वजह केंद्र की ओर रुख कर गए। सपा को 1996 लोकसभा चुनाव में 17 सीटें मिली। 13 दिन में अटल की सरकार गिरने के बाद एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने। मुलायम इस सरकार में रक्षा मंत्री बनाए गए। मुलायम के अलावा कैबिनेट में उनके सहयोगी जेनेश्वर मिश्र और बेनी प्रसाद वर्मा को भी शामिल किया गया।
2002 में सबसे बड़ी पार्टी के नेता, मगर सरकार बनाने से चूके
2002 के UP विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह की पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनी। 403 सीटों पर हुए चुनाव में सपा को 143 सीटें मिलीं, लेकिन भाजपा-मायावती गठबंधन ने सरकार बना ली। मुलायम सत्ता से फिर दूर रह गए। केंद्र की राजनीति से भी बेदखल हो चुके मुलायम के सियासी करियर पर फिर चर्चा शुरू हो गई।
वापसी कैसे की?
मायावती के विधायकों को तोड़कर सरकार बना ली
5 साल से केंद्र और राज्य सत्ता से बाहर चल रहे मुलायम के लिए 2003 में मायावती और भाजपा के बीच आंतरिक कलह ने संजीवनी का काम किया। सरकार में एक साल के भीतर ही आंतरिक कलह शुरू हो गई, जिसके बाद भाजपा ने समर्थन वापस लेने का फैसला कर लिया।
इधर, मायावती भी अपना इस्तीफा लेकर राजभवन पहुंच गईं। मुलायम ने दोनों के झगड़े का फायदा उठाकर सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया। मुलायम मुख्यमंत्री बनाए गए। CM बनते ही मुलायम ने मायावती के 98 में से 37 विधायकों को तोड़ लिया।
मायावती ने बागी विधायकों की सदस्यता रद्द करने के लिए अध्यक्ष के पास अपील की, लेकिन अध्यक्ष ने इसे खारिज कर दिया, जिसके बाद मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने 37 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया, लेकिन तब तक मुलायम की सरकार का कार्यकाल लगभग पूरा हो चुका था।
फंड की कमी से जूझ रही थी सपा
2007 के विधानसभा चुनाव में सपा की करारी हार हुई और पार्टी 100 सीटों के भीतर सिमटकर रह गई। चुनावी हार की समीक्षा में संसाधनों की कमी को इसकी बड़ी वजह माना गया।
वापसी कैसे की?
अमर सिंह के सहारे कॉर्पोरेट की एंट्री
अमर सिंह के सहयोग से मुलायम ने पार्टी में उद्योगपतियों का सहयोग लेना शुरू कर दिया। नतीजा ये हुआ कि सपा की बैठकें फाइव स्टार होटल में होने लगीं। इतना ही नहीं, भाजपा और कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा चंदा हासिल करने वाली पार्टियों की लिस्ट में सपा शामिल हो गई।