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Monday 10 October 2022

कैसे किया मुलायम सिंग यादव ने गेस्ट हाउस कांड, उसके बाद मायावती ने सपोर्ट वापस लिया

समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव का सोमवार को निधन हो गया। 82 साल के मुलायम यूरिन इन्फेक्शन के चलते 26 सितंबर से गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती थे। अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के ट्विटर हैंडल पर मुलायम के निधन की जानकारी दी। सैफई में मंगलवार को मुलायम का अंतिम संस्कार किया जाएगा।

मुलायम को 2 अक्टूबर को ऑक्सीजन लेवल कम होने के बाद ICU में शिफ्ट किया गया था। मेदांता के PRO ने बताया था कि मुलायम सिंह को यूरिन में इन्फेक्शन के साथ ही ब्लड प्रेशर की समस्या बढ़ गई थी। स्थिति में सुधार नहीं होने पर डॉक्टरों ने उन्हें वेंटिलेटर पर शिफ्ट कर दिया था।

22 नवंबर 1939 को सैफई में जन्मे मुलायम सिंह यादव की पढ़ाई-लिखाई इटावा, फतेहाबाद और आगरा में हुई। मुलायम कुछ दिन तक मैनपुरी के करहल में जैन इंटर कॉलेज में प्राध्यापक भी रहे। पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर मुलायम सिंह की दो शादियां हुईं। पहली पत्नी मालती देवी का निधन मई 2003 में हो गया था। अखि‍लेश यादव मुलायम की पहली पत्नी के ही बेटे हैं। उनके निधन पर राजनेताओं से लेकर आम लोगों तक ने दुख जताया है।

1993 में मुख्यमंत्री बनने के बाद 2 साल तक सरकार में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था, लेकिन 2 जून 1995 को लखनऊ में गेस्ट हाउस कांड हो गया। दरअसल, सहयोगी बसपा ने मुलायम सरकार से समर्थन वापस लेने के लिए गेस्ट हाउस में विधायकों की बैठक बुलाई थी। मीटिंग शुरू होते ही सपा कार्यकर्ताओं ने गेस्ट हाउस में हंगामा कर दिया।

हंगामे ने धीरे-धीरे विद्रोह का रूप ले लिया और मायावती की भी जान खतरे में आई। हाालंकि, वहां मौजूद सुरक्षाकर्मियों की वजह से मायावती बच गईं। मायावती ने आरोप लगाया कि सपा के कार्यकर्ता उन्हें मारने आए थे, जिससे बसपा खत्म हो जाए।

गेस्ट हाउस कांड के बाद मुलायम की सरकार गिर गई। मायावती ने भाजपा के सपोर्ट से उत्तर प्रदेश में सरकार बना ली। इसके बाद गेस्ट हाउस कांड को लेकर सपा नेताओं और कार्यकर्ताओं पर शिकंजा कसना शुरू हो जाता है। मुलायम और उनके भाई शिवपाल के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज किया जाता है।

वापसी कैसे की?

केंद्र में किंगमेकर बने, गुजराल-देवगौड़ा सरकार में रक्षामंत्री रहे

UP की सत्ता से रूखसत होने के बाद मुलायम के राजनीतिक भविष्य को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई थी, लेकिन मुलायम ने नया दांव खेल दिया। इस बार मुलायम UP की वजह केंद्र की ओर रुख कर गए। सपा को 1996 लोकसभा चुनाव में 17 सीटें मिली। 13 दिन में अटल की सरकार गिरने के बाद एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने। मुलायम इस सरकार में रक्षा मंत्री बनाए गए। मुलायम के अलावा कैबिनेट में उनके सहयोगी जेनेश्वर मिश्र और बेनी प्रसाद वर्मा को भी शामिल किया गया।

2002 में सबसे बड़ी पार्टी के नेता, मगर सरकार बनाने से चूके

2002 के UP विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह की पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनी। 403 सीटों पर हुए चुनाव में सपा को 143 सीटें मिलीं, लेकिन भाजपा-मायावती गठबंधन ने सरकार बना ली। मुलायम सत्ता से फिर दूर रह गए। केंद्र की राजनीति से भी बेदखल हो चुके मुलायम के सियासी करियर पर फिर चर्चा शुरू हो गई।

वापसी कैसे की?

मायावती के विधायकों को तोड़कर सरकार बना ली

5 साल से केंद्र और राज्य सत्ता से बाहर चल रहे मुलायम के लिए 2003 में मायावती और भाजपा के बीच आंतरिक कलह ने संजीवनी का काम किया। सरकार में एक साल के भीतर ही आंतरिक कलह शुरू हो गई, जिसके बाद भाजपा ने समर्थन वापस लेने का फैसला कर लिया।

इधर, मायावती भी अपना इस्तीफा लेकर राजभवन पहुंच गईं। मुलायम ने दोनों के झगड़े का फायदा उठाकर सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया। मुलायम मुख्यमंत्री बनाए गए। CM बनते ही मुलायम ने मायावती के 98 में से 37 विधायकों को तोड़ लिया।

मायावती ने बागी विधायकों की सदस्यता रद्द करने के लिए अध्यक्ष के पास अपील की, लेकिन अध्यक्ष ने इसे खारिज कर दिया, जिसके बाद मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने 37 विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया, लेकिन तब तक मुलायम की सरकार का कार्यकाल लगभग पूरा हो चुका था।

फंड की कमी से जूझ रही थी सपा

2007 के विधानसभा चुनाव में सपा की करारी हार हुई और पार्टी 100 सीटों के भीतर सिमटकर रह गई। चुनावी हार की समीक्षा में संसाधनों की कमी को इसकी बड़ी वजह माना गया।

वापसी कैसे की?

अमर सिंह के सहारे कॉर्पोरेट की एंट्री

अमर सिंह के सहयोग से मुलायम ने पार्टी में उद्योगपतियों का सहयोग लेना शुरू कर दिया। नतीजा ये हुआ कि सपा की बैठकें फाइव स्टार होटल में होने लगीं। इतना ही नहीं, भाजपा और कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा चंदा हासिल करने वाली पार्टियों की लिस्ट में सपा शामिल हो गई।

Monday 27 June 2022

Who will rule Shivsena - Maharashtra political crisis

As you know that the political drama is not taking hold in Maharashtra. The thing to be seen here is that the governments keep on falling every now and then, but here there is a crisis on the party itself, as you all know who will have Shiv Sena with the Shinde faction or with the Thackeray family. it still remains a mystery. 

There is a political crisis on the Uddhav Thackeray government in Maharashtra. Meanwhile, Shiv Sena has targeted the Center for giving y + security to the rebel MLAs. Shiv Sena has written in the editorial of its mouthpiece Saamana that the BJP's pole has finally been exposed in the Guwahati matter. It was written in Saamana that the BJP was constantly saying that the rebellion of the MLAs is an internal matter of Shiv Sena. But now it is being told that Eknath Shinde and Devendra Fadnavis had a secret meeting in Vadodara in the dark. Home Minister Amit Shah was present in this meeting.


Thursday 16 June 2022

क्या धार्मिक विवाद मुद्दा बनेगा इस्लामी राष्ट्रों एवं भारत के बीच द्विपक्षीय रिश्तों के अलगाव का कारण?.

हमारे हित जुड़े हुए हैं। इसलिए इस्लामी राष्ट्रों में जो प्रतिक्रियाएं दिख रही हैं, वे उन्हें थामें, क्योंकि द्विपक्षीय रिश्तों का बेपटरी होना दोनों पक्षों को नुकसान पहुंचा सकता है|

भारत की सत्तारूढ़ पार्टी के प्रवक्ताओं के टीवी बयानों से नाराज चल रहे मुस्लिम राष्ट्र कुछ हद तक नरम पड़ने लगे हैं। नई दिल्ली के दौरे पर आए ईरान के विदेश मंत्री हुसैन आमिर अब्दुल्लाहियन ने स्पष्ट कहा है कि इस मामले में भारत सरकार की ओर से की गई कार्रवाई से वह संतुष्ट हैं। जाहिर है, विदेश नीति के मोर्चे पर अचानक आई इस बड़ी चुनौती से पार पाने के लिए केंद्र सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है। ऐसा करना जरूरी भी है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से मुस्लिम राष्ट्रों के साथ हमारे संबंध काफी अच्छे हो गए हैं। उनमें निरंतर सुधार दिख रहा था। इसमें निस्संदेह हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बड़ा हाथ है, जिन्होंने न सिर्फ कई मुस्लिम राष्ट्रों का दौरा किया, बल्कि संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, सऊदी अरब जैसे देशों के नेताओं के साथ द्विपक्षीय रिश्ते को निजी दोस्ती के मुकाम तक ले जाने में सफल रहे।

इन सबसे स्वाभाविक तौर पर मुस्लिम राष्ट्रों के साथ हमारे आर्थिक व कारोबारी संबंध तेजी से मजबूत होने लगे थे। कहा यह भी जाने लगा था कि पश्चिम एशिया को लेकर भारत ने अपनी नीतियों में जो बदलाव किया है, उसके कारण हमारे आपसी रिश्ते अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गए हैं। न सिर्फ हमारी दोस्ती मजबूत हुई, बल्कि इसी दौरान पाकिस्तान के साथ इन देशों के रिश्ते भी कमजोर हुए।

मगर पश्चिम एशिया के साथ रिश्तों में आई यह नई ऊंचाई पिछले दिनों दी गई विवादित टिप्पणियों के बाद जमींदोज होती दिखी। सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, कुवैत जैसे मुल्कों के साथ-साथ इस्लामी सहयोग संगठन (57 मुस्लिम राष्ट्रों की संस्था) ने भी अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर की। न सिर्फ ईरान जैसे देशों ने समन भेजकर हमारे राजदूत से अपना आधिकारिक विरोध दर्ज कराया, बल्कि मुस्लिम राष्ट्रों के कई सामाजिक व धार्मिक संगठनों ने भी टिप्पणियों की कडे़ शब्दों में निंदा की। इससे हमारे आपसी रिश्तों में खटास पड़ने की आशंका बढ़ गई है, लिहाजा वक्त की यही मांग थी कि ‘डैमेज कंट्रोल’ करके किसी भी तरह से आसन्न नुकसान को कम किया जाए। अच्छी बात यह है कि केंद्र सरकार इस कोशिश में सफल होती दिख रही है।

इस पूरे मामले का असर रोजी-रोटी की तलाश में मुस्लिम राष्ट्रों में रहने वाले करीब 85 लाख भारतीयों पर पड़ सकता है। वे वहां से हर साल अरबों डॉलर की रकम भारत में अपने परिजनों को भेजते हैं। साल 2020-21 में मुस्लिम राष्ट्रों में रहने वाले भारतीयों ने 83 अरब डॉलर की राशि भारत भेजी थी, जिनमें से 53 फीसदी तो संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, कतर, कुवैत और ओमान से ही आई थी। साफ है, धार्मिक टिप्पणी से पैदा हुए हालात मुस्लिम राष्ट्रों में रहने वाले भारतीयों के लिए नुकसानदेह हो सकते हैं। इस चुनौती पर विजय पाने के लिए हमें प्रभावी रणनीति बनानी ही होगी। चूंकि पश्चिम एशिया के साथ भारत के रिश्ते हालिया वर्षों में काफी अच्छे हुए हैं, इसलिए उन देशों में तैनात हमारे राजदूत और कूटनीतिज्ञ भारत के पक्ष को सामने रख सकते हैं। इस तरह के कूटनीतिक कदम क्षणिक नाराजगी को थामने में कारगर साबित होते हैं। इसी तरह, हमारे शीर्ष नेता मुस्लिम राष्ट्रों के अपने समकक्षों से बातचीत कर सकते हैं।

निश्चय ही, हमारी हुकूमत ने इस तरह के कूटनीतिक व राजनीतिक प्रयास शुरू कर दिए होंगे। स्थानीय स्तर पर भी विवादित बोल बोलने वाले नेताओं पर कार्रवाई की गई है, जिसका मुस्लिम राष्ट्रों पर सकारात्मक असर पड़ा होगा। हालांकि, शोचनीय यह भी है कि इन देशों के साथ हमारे संबंध द्विपक्षीय हैं। अगर हमें उनसे फायदा होता है, तो वे भी हमसे खूब लाभ कमाते हैं। परस्पर हितों को आगे बढ़ाने वाला संबंध है यह। इसलिए, यह बात भी उनको स्पष्ट कर देनी चाहिए कि उनके समाज में ‘बायकॉट इंडियन प्रोडक्ट’ (भारतीय उत्पादों का बहिष्कार करो) जैसी जो अतिवादी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं, वे उनको थामने की कोशिश करें, क्योंकि द्विपक्षीय रिश्ते का बेपटरी होना उनको भी नुकसान पहुंचा सकता है। आंकड़े बताते हैं कि अरब देशों के साथ भारत सालाना 110 अरब डॉलर से अधिक का द्विपक्षीय कारोबार करता है। हमारी ऊर्जा जरूरत का 70 फीसदी हिस्सा वहीं से आयात किया जाता है। संयुक्त अरब अमीरात के साथ तो हमारा 60 अरब डॉलर का कारोबार है। स्पष्ट है, अगर द्विपक्षीय रिश्तों में कोई दरार आती है, तो कारोबारी नुकसान मुस्लिम राष्ट्रों को भी होगा।

इन देशों को यह संदेश देने की भी जरूरत है कि भारत कोई ऐसा राष्ट्र नहीं है, जो खास धार्मिक रुख रखता हो। यहां हर मजहब का बराबर सम्मान किया जाता है। लोगों को न सिर्फ अपना-अपना धर्म मानने और इबादत करने की आजादी हासिल है, बल्कि धर्म के आधार पर राष्ट्र उनमें किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं करता है। यही वजह है कि यदि धार्मिक टिप्पणी की गई, तो तुरंत कार्रवाई भी की गई। इसलिए, मुस्लिम राष्ट्रों के सामने हमें अपना पक्ष मजबूती से रखना ही होगा और उनको यह एहसास दिलाना होगा कि इस मामले को अनावश्यक तूल देने से आपसी रिश्तों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

यहां इस्लामी सहयोग संगठन जैसी संस्थाओं को भी आईना दिखाने की जरूरत होगी। यह संगठन अभी जिस तरह से मुखर है और हमें समाधान देने की कोशिश कर रहा है, उससे पहले उसे अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। अपने सदस्य मुल्कों में मानवाधिकार को लेकर उसका जो रवैया रहा है, उसे हमें बेपरदा करना होगा। इससे यह भी पता चलेगा कि ये संगठन कितने पानी में हैं। इसके खिलाफ सख्त रुख दिखाना इसलिए जरूरी है, ताकि उसके नेता भारत के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी करने से पहले यह सोच लें कि नया भारत पलटवार भी कर सकता है।

यह समय ‘तू-तू, मैं-मैं’ का नहीं, बल्कि राजनयिक व कूटनीतिक तरीके से इस मसले का समाधान तलाशने का है। धार्मिक टिप्पणी से मुस्लिम राष्ट्रों को जो ठेस पहुंची है, उससे हमें जल्द ही पार पाना होगा। इस नकारात्मकता को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि यही दोनों पक्षों के हित में है। इस मसले को अनावश्यक बढ़ाना मुस्लिम राष्ट्रों के साथ हमारे द्विपक्षीय संबंधों में खटास भर सकता है।

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